भगवान महावीर के ललाट पर सूर्य किरणों का तिलक: कोबा मंदिर में दिखा अद्भुत दृश्य

गांधीनगर – जैन कनेक्ट संवाददाता | गुजरात के गांधीनगर जिले के कोबा गांव स्थित श्री महावीर आराधना केंद्र में 22 मई को एक बार फिर आस्था और खगोल विज्ञान का अद्भुत संगम देखने को मिला। दोपहर 2:07 बजे ठीक उसी समय सूर्य की किरणें भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा के ललाट पर पड़ीं, मानो प्रकृति स्वयं उन्हें तिलक कर रही हो। इस विलक्षण क्षण को देखने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में उमड़ पड़े और उन्होंने इसे एक दैवीय अनुभव बताया।

🌞 सूर्य तिलक की विलक्षण घटना हर साल 22 मई को दोपहर 2:07 बजे सूर्य की किरणें भगवान महावीर के ललाट पर पड़ती हैं, जिसे श्रद्धालु ‘सूर्य तिलक’ कहते हैं।

🛕 खगोलीय गणना से निर्मित मंदिर इस मंदिर का निर्माण वैज्ञानिक पद्धति और खगोलीय गणनाओं के आधार पर 39 वर्ष पूर्व किया गया था।

🧘 आचार्य कैलाश सागर जी की स्मृति में आयोजन यह आयोजन पूज्य आचार्य भगवंत कैलाश सागर सुरेश्वर जी महाराज की स्मृति में प्रतिवर्ष संपन्न होता है।

📅 लगातार 38 वर्षों से हो रहा है यह चमत्कार पिछले 38 वर्षों से हर साल यह घटना बिना किसी चूक के दोहराई जा रही है।

👨‍👩‍👧‍👦 श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देशभर से श्रद्धालु इस दिव्य दृश्य के साक्षी बनने मंदिर पहुंचे, वातावरण भक्तिभाव से सराबोर हो गया।

🗣️ पूर्व मंत्री चूडासमा भी हुए शामिल गुजरात के पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह चूडासमा ने भी कार्यक्रम में भाग लिया और कहा कि वे पिछले 18 वर्षों से इसका साक्षात्कार कर रहे हैं।

🧪 विज्ञान और श्रद्धा का संगम चूडासमा ने कहा, “जहां विज्ञान समाप्त होता है, वहां श्रद्धा प्रारंभ होती है।” यह दृश्य उसी का प्रमाण है।

📸 हर पल को किया गया कैमरे में कैद श्रद्धालुओं ने सूर्य तिलक के इस दुर्लभ क्षण को अपने मोबाइल और कैमरे में संजोकर सोशल मीडिया पर साझा किया।

🪷 आस्था से ओतप्रोत वातावरण मंदिर परिसर में भक्तों की भजन-कीर्तन की ध्वनि और दीपों की रौशनी ने दिव्यता को और बढ़ा दिया।

🌐 सिर्फ 22 मई को ही होता है यह चमत्कार इस सूर्य तिलक का संयोग न तो एक दिन पहले होता है और न ही एक दिन बाद – यह केवल 22 मई को ही संभव है।

कोबा के श्री महावीर आराधना केंद्र में होने वाली यह सूर्य तिलक घटना न केवल श्रद्धा का प्रतीक है बल्कि भारतीय खगोलशास्त्र और स्थापत्य विज्ञान की अद्वितीय उपलब्धि भी है। श्रद्धालु इसे एक चमत्कार नहीं बल्कि सदियों पुरानी परंपरा और वैज्ञानिक दूरदर्शिता का परिणाम मानते हैं।

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