
राजनांदगांव – जैन कनेक्ट संवाददाता | आध्यात्मिक ऊर्जा और तप की पराकाष्ठा को समर्पित जैन साध्वियों का एक विशाल दल इन दिनों एक अद्वितीय पदयात्रा पर निकला है। यह यात्रा गुरु की समाधि स्थल चन्द्रगिरी से प्रारंभ होकर झारखंड स्थित सम्मेद शिखर जी — 20 तीर्थंकरों और करोड़ों मुनियों की मोक्ष भूमि — तक पहुंचेगी। यह यात्रा न केवल शारीरिक साहस का प्रतीक है, बल्कि आत्मकल्याण, अनुशासन और श्रद्धा की मिसाल भी बन गई है।
इस ऐतिहासिक पदयात्रा का नेतृत्व आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की प्रथम शिष्या आर्यिका 105 गुरुमति माता कर रही हैं, जिनके साथ 48 साध्वियां हैं। ये सभी साध्वी वृंद लगभग 900 किलोमीटर की दूरी तपस्विनी भावना के साथ नंगे पांव तय कर रही हैं।
🙏 समर्पण से भरी शुरुआत – यात्रा की शुरुआत राज्य के पहले जैन तीर्थ चन्द्रगिरी से 26 फरवरी को हुई, जहां आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की समाधि स्थित है।
🦶 नंगे पांव तपस्या – 900 किमी की पदयात्रा को साध्वी वृंद नंगे पांव गर्मी और कठिन रास्तों में तय कर रही हैं, जो उनके आत्मबल और श्रद्धा का प्रतीक है।
👵 79 वर्षीय आर्यिका का नेतृत्व – इस यात्रा का नेतृत्व कर रही हैं 79 वर्षीय आर्यिका गुरुमति माता, जिन्होंने 42 साल बाद फिर सम्मेद शिखर की यात्रा प्रारंभ की है।
🛕 गुरु की स्मृति में यात्रा – यह यात्रा ब्रह्मलीन आचार्य श्री को विनयांजलि है, जिनकी समाधि चन्द्रगिरी में 2024 में हुई थी।
🗺️ राज्यभर से गुजरेगी यात्रा – यह यात्रा डोंगरगांव, भिलाई, रायपुर, जशपुर, अंबिकापुर जैसे प्रमुख स्थानों से होती हुई झारखंड पहुंचेगी।
🪔 जैन धर्म के दो पवित्र स्थलों का संगम – यात्रा चन्द्रगिरी (छत्तीसगढ़) और सम्मेद शिखर (झारखंड) — दोनों ही जैन धर्म के पवित्र स्थल हैं।
💬 स्मृति में बना स्मारक – केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आचार्य श्री की स्मृति में चन्द्रगिरी में स्मारक का भूमिपूजन किया और 100 रुपये का स्मृति सिक्का जारी किया।
📿 दीक्षा का अद्वितीय इतिहास – आर्यिका गुरुमति माता ने 1987 में दीक्षा ली थी, और वह आचार्य विद्यासागर जी की पहली शिष्या हैं।
🧘 तीर्थ का आध्यात्मिक महत्व – सम्मेद शिखर वह भूमि है, जहां 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया। जैन अनुयायियों के लिए यह मक्का-मदीना और चार धाम के समकक्ष है।
🚶 पुनः वंदना की ओर – यह वही साध्वी हैं जिन्होंने 1983 में अपने गुरु के साथ सम्मेद शिखर की पहली वंदना की थी, और अब 42 वर्षों बाद फिर उसी तीर्थ की ओर अग्रसर हैं।
यह पदयात्रा केवल एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं, बल्कि गुरु भक्ति, आत्मानुशासन और मोक्षमार्ग की प्रेरणादायक मिसाल है। तप, त्याग और आस्था की इस अभूतपूर्व पहल से न केवल जैन समाज बल्कि समूचा आध्यात्मिक जगत प्रेरित हो रहा है। साध्वी वृंद की यह यात्रा दिखाती है कि आत्मशुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाने वाला मार्ग निष्ठा, संयम और श्रद्धा से होकर ही गुजरता है।
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