मासूमी पटवा का संयम मार्ग : सांसारिक मोह त्याग कर बनीं दीक्षा मुमुक्षु

जोधपुर – जैन कनेक्ट संवाददाता | राजस्थान की सांस्कृतिक और धार्मिक राजधानी जोधपुर एक बार फिर अध्यात्म की रोशनी से आलोकित होने जा रही है। यहां आगामी दिनों में कई दीक्षा महोत्सवों का आयोजन होगा, जिनमें पांच से अधिक मुमुक्षु बेटियां सांसारिक जीवन का त्याग कर संयम मार्ग को अपनाएंगी। इनमें सबसे खास नाम है 19 वर्षीय मासूमी पटवा का, जिन्होंने अपने परिवार और मोह-माया को छोड़कर जैन साध्वी बनने का निर्णय लिया है। उनका दीक्षा समारोह 5 जून को जोधपुर के चौपासनी हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में पूज्य आचार्य हीराचंद जी महाराज साहब के सानिध्य में सम्पन्न होगा।

📿 सिर्फ 19 वर्ष की उम्र में बड़ा निर्णय मासूमी पटवा ने मात्र 19 वर्ष की आयु में अपने जीवन को मोक्षमार्ग के लिए समर्पित करने का साहसिक निर्णय लिया है।

🎓 उच्च शिक्षा प्राप्त, पुणे से किया जैनोलॉजी कोर्स उन्होंने पुणे से जैनोलॉजी का एक वर्षीय कोर्स पूरा कर, दीक्षा लेने की ठोस नींव तैयार की।

🏡 धार्मिक परिवार से मिली प्रेरणा मासूमी के दादा-दादी, नाना-नानी और परिवार में पहले से ही कई महाराज साहब होने के कारण धार्मिक संस्कार बचपन से मिले।

🧘‍♀️ महाराज साहब के शिविर से जागी संयम भावना एक शिविर के दौरान पूज्य आचार्य हीराचंद जी महाराज के प्रवचनों ने उनके मन में संयम और दीक्षा की भावना को जागृत किया।

💬 संयम में है सच्चा आनंद मासूमी का मानना है कि सांसारिक जीवन में नहीं, बल्कि संयमित जीवन में ही सच्चा आनंद छिपा है।

🌿 दीक्षा समारोह की भव्य तैयारियां 5 दिन पहले से मेहंदी और बंदोली जैसे पारंपरिक आयोजन प्रारंभ हो गए हैं, जिनका उत्साह विवाह समारोह जैसा है।

🙏 गुरुदेवों का विशेष आशीर्वाद पूज्य आचार्य हीराचंद जी महाराज और आचार्य महेंद्र मुनि जी महाराज का विशेष मार्गदर्शन मासूमी को प्राप्त हुआ।

📖 ज्ञान और आत्मानुशासन का संगम मासूमी की दीक्षा केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि ज्ञान और आत्मानुशासन का जीवंत उदाहरण है।

👩‍👧 बेटियों का संयम पथ की ओर अग्रसर होना प्रेरणादायक मासूमी जैसी युवा बेटियों का मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होना समाज को आत्मनिरीक्षण और प्रेरणा दोनों प्रदान करता है।

🕊️ साध्वी बनने की राह को बताया शांतिपूर्ण मासूमी ने कहा कि यह मार्ग कठिन जरूर है, परंतु अंतहीन शांति और आत्मिक संतोष इसी में निहित है।

मासूमी पटवा की दीक्षा की यह यात्रा आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत बनकर सामने आई है। आधुनिक शिक्षा और पारिवारिक परंपराओं के संतुलन के साथ लिया गया यह निर्णय जैन समाज में संयम और साधना की परंपरा को और मजबूत करेगा।

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