फारबिसगंज – जैन कनेक्ट संवाददाता | फारबिसगंज में एक विशेष अवसर पर जैन धर्म की परंपरागत और आध्यात्मिक विधियों को सजीव करते हुए, जैन संस्कार विधि के अंतर्गत श्रेयांश जैन (फारबिसगंज) और प्रेक्षा जैन (मुंबई) का पाणिग्रहण संस्कार सादगी और संस्कारों से ओत-प्रोत वातावरण में संपन्न हुआ। यह आयोजन स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा तेरापंथ भवन में सम्पन्न हुआ, जिसमें दोनों परिवारों के साथ-साथ जैन समाज के कई गणमान्य पदाधिकारी उपस्थित रहे।
🔹 यहां प्रस्तुत हैं कार्यक्रम से जुड़ी मुख्य झलकियां :
📿 जैन संस्कार विधि की प्रेरणा तेरापंथ धर्मसंघ के नवम आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित जैन संस्कार विधि जीवन को सादगी और आध्यात्मिकता से जोड़ने की प्रेरणा देती है।
💍 पाणिग्रहण संस्कार की सादगी पारंपरिक रीति-रिवाजों की बजाय यह विवाह पूरी तरह से जैन संस्कार विधि के अनुसार, म्यूजिकल थीम पर और पूर्ण सादगी से संपन्न हुआ।
🥗 खाद्य सीमा और प्रतिबंध कार्यक्रम में सिर्फ 21 प्रकार के खाद्य पदार्थों की अनुमति रही और आलू, प्याज, लहसुन, गाजर जैसे जमीकंद का प्रयोग पूर्णतः वर्जित था।
🎶 म्यूजिकल जैन विधि संस्कारकों ने विवाह को जैन मंत्रों और संगीत की धुन पर संयोजित कर उसे अनोखा स्वरूप प्रदान किया।
🙏 धर्मसंघ की गरिमामयी उपस्थिति महासभा, युवक परिषद और उपासक श्रेणी के प्रमुख पदाधिकारीगण इस आयोजन में उपस्थित होकर इसकी गरिमा को बढ़ाया।
🧘 संस्कारों को जीवंत बनाने की पहल तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष आशीष गोलछा ने इस आयोजन को जैन संस्कार विधि के प्रसार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया।
📝 लिखित सहमति और प्रमाणन वर-वधु और परिवारों की लिखित सहमति के साथ प्रमाणपत्रों के माध्यम से जैन संस्कार विधि को विधिवत दर्ज किया गया।
🕯 कार्यक्रम का उद्देश्य इस आयोजन का प्रमुख उद्देश्य जैनत्व को भावी पीढ़ियों में सुरक्षित और प्रोत्साहित करना रहा।
🌐 संपूर्ण आयोजन का समर्पण फारबिसगंज परिषद के सदस्यों ने पूरे आयोजन में न केवल भागीदारी की, बल्कि संस्कारक दल के साथ मिलकर व्यवस्थाओं में सहयोग भी किया।
🌱 सेवा, संस्कार और संगठन की त्रयी तेरापंथ युवक परिषद ने अपने तीनों मूल स्तंभ — सेवा, संस्कार और संगठन — को इस आयोजन में समर्पित भाव से जीवंत किया।
इस आयोजन ने यह स्पष्ट किया कि आधुनिकीकरण के इस युग में भी जैन समाज अपनी परंपराओं को जीवंत बनाए रखने हेतु दृढ़ संकल्पित है। जैन संस्कार विधि न केवल धार्मिक सादगी को बढ़ावा देती है, बल्कि जीवन में आत्मिक अनुशासन और संस्कृति का भी सृजन करती है।

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