एटा – जैन कनेक्ट संवाददाता | एटा जिले के रिजोर गांव में टीले की खुदाई के दौरान शुक्रवार को 20वें तीर्थंकर भगवान मुनि सुब्रतनाथ की प्राचीन प्रतिमा निकली, जिससे जैन समाज में गहरी आस्था और उल्लास की लहर दौड़ गई। लेकिन यह प्रतिमा अभी तक ताले में बंद है और इसके अभिषेक व पूजन की अनुमति नहीं मिल पाई है। जैन समाज के लोगों ने जिलाधिकारी से भेंट कर इसे समाज को सौंपने की मांग की है। वहीं, प्रतिमा को लेकर भ्रम भी फैला जब कुछ लोगों ने इसे बुद्ध की मूर्ति बताया, परन्तु समाज के जानकारों ने तुरंत पहचान की और एएसआई ने भी इसकी पुष्टि कर दी।
🔍 खुदाई में मिली ऐतिहासिक प्रतिमा रिजोर गांव में आरआर सेंटर के लिए चल रही खुदाई के दौरान शुक्रवार दोपहर जमीन से भगवान सुब्रतनाथ की प्राचीन प्रतिमा प्राप्त हुई।
🧘♂️ पहचान में भ्रम, फिर हुई पुष्टि कुछ लोगों ने मूर्ति को भगवान बुद्ध की बताया, मगर जैन समाज के जानकारों ने प्रतिमा को देखते ही पहचान लिया। एएसआई ने भी पुष्टि की कि यह जैन तीर्थंकर की प्रतिमा है।
🔐 मूर्ति ताले में बंद, चाबी पुलिस के पास मूर्ति को गांव के प्रधान की सुपुर्दगी में ताले में बंद कर दिया गया, जिसकी चाबी पुलिस अपने साथ ले गई।
👀 दर्शन को पहुंचे श्रद्धालु शनिवार सुबह बड़ी संख्या में महिलाएं व श्रद्धालु गांव पहुंचे, लेकिन मूर्ति ताले में बंद होने के कारण सिर्फ बाहर से ही प्रणाम कर लौटना पड़ा।
📜 ज्ञापन देकर की मांग जैन समाज की पद्मावती पुरवाल पंचायत के अध्यक्ष योगेश जैन व महामंत्री पंकज जैन ने जिलाधिकारी प्रेम रंजन सिंह को ज्ञापन सौंपकर मूर्ति समाज को सौंपने की मांग की।
🛕 प्रतिमा की विशेष पहचानें प्रतिमा के वक्ष स्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह, शेर की आकृति, और नग्न स्वरूप दिगंबर परंपरा की पुष्टि करते हैं।
🚓 एएसआई टीम का इंतजार पुलिस और समाज के लोग दिनभर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम के आने का इंतजार करते रहे, पर टीम नहीं पहुंची।
📸 एएसआई ने चित्र से की पुष्टि शुक्रवार देर रात एएसआई अधिकारियों ने प्रतिमा की तस्वीर देखकर पुष्टि की कि यह जैन तीर्थंकर की ही प्रतिमा है।
🙏 भावुक हुए अनुयायी भगवान के दर्शन न हो पाने से जैन अनुयायी भावविहल हो गए और गांव से खाली हाथ लौटना पड़ा।
🏗️ आरआर सेंटर निर्माण के दौरान हुआ अनावरण यह प्रतिमा आरआर सेंटर के निर्माण हेतु चल रही खुदाई के दौरान मिली, जिससे ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ गया।
जैन समाज की यह मांग है कि प्रतिमा को सुरक्षित समाज को सौंपा जाए ताकि उसका विधिवत पूजन और अभिषेक हो सके। इस ऐतिहासिक खोज ने धार्मिक भावना के साथ-साथ पुरातात्विक महत्व को भी रेखांकित किया है।

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