मेरठ – जैन कनेक्ट संवाददाता | मुंबई के विले पार्ले दिगंबर जैन मंदिर विवाद की तपन अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि उत्तर प्रदेश के मेरठ से एक और चौंकाने वाली खबर आई है। सरस्वती लोक कॉलोनी स्थित बी-87 भवन में वर्षों से संचालित दिगंबर जैन श्री आदिनाथ चैत्यालय और संत भवन को मेरठ विकास प्राधिकरण (MDA) द्वारा गिराने के आदेश दिए गए हैं। यह खबर 29 मई 2025 को “दैनिक जागरण” में प्रकाशित हुई। जैन समाज में इसे लेकर तीव्र असंतोष देखा जा रहा है।
👇 इस घटनाक्रम से जुड़ी प्रमुख बातें:
🔨 बिना नोटिस तोड़ने का आदेश मेरठ विकास प्राधिकरण ने मंदिर को बिना किसी पूर्व सूचना के अवैध घोषित कर तोड़ने के आदेश दिए, जबकि न तो मंदिर को और न ही समिति के किसी सदस्य को कोई नोटिस प्राप्त हुआ।
📜 एक अधिवक्ता की शिकायत बनी कारण स्थानीय निवासी और अधिवक्ता दशमीत सिंह की शिकायत पर यह कार्रवाई शुरू हुई, जिसमें उन्होंने कहा कि आवासीय भवन में मंदिर बनाया जाना अवैध है।
📣 जैन समाज ने जताया विरोध भाजपा महानगर अध्यक्ष विवेक रस्तोगी के नेतृत्व में जैन समाज ने MDA के वीसी संजय मीणा से मुलाकात कर आपत्ति दर्ज कराई और ज्ञापन सौंपा।
🧘 संतों की सुविधा हेतु बना भवन संत भवन का उपयोग जैन संतों के विश्राम, आहार और प्रवचन के लिए किया जाता है। यह समाज द्वारा धार्मिक उद्देश्यों से बनाया गया है।
😠 दशमीत सिंह पर गंभीर आरोप समाज ने आरोप लगाया कि अधिवक्ता दशमीत सिंह जैन धर्म के प्रति द्वेष रखता है और पदाधिकारियों से जबरन धन की मांग करता है।
💰 धमकी के साथ पैसे की मांग पत्र में उल्लेख है कि दशमीत सिंह ने दस लाख रुपये एकमुश्त और बीस हजार रुपये मासिक देने की मांग की, अन्यथा मंदिर को गिराने की धमकी दी।
📄 समिति ने सौंपा हस्ताक्षरयुक्त पत्र समाज ने उक्त शिकायत के समर्थन में हस्ताक्षरयुक्त पत्र वीसी को सौंपा, जिसमें सारे घटनाक्रम का उल्लेख किया गया है।
🔍 MDA ने दस्तावेजों की जांच का दिया आश्वासन प्राधिकरण ने स्पष्ट किया कि वह किसी एक व्यक्ति की शिकायत पर कार्रवाई नहीं करता और दस्तावेज देखने के बाद ही निर्णय लिया जाएगा।
📺 मीडिया में मामला उजागर इस प्रकरण की पूरी जानकारी “चैनल महालक्ष्मी” के एपिसोड नंबर 3356 में विस्तार से प्रसारित की गई है।
🤝 जैन समाज से एकजुटता की अपील समाज में आह्वान किया गया है कि धर्मायतनों की रक्षा के लिए समाज को संगठित और कानूनी रूप से सजग रहना चाहिए।
जैन समाज के लिए यह प्रकरण केवल एक भवन या चैत्यालय का मुद्दा नहीं, बल्कि धार्मिक अस्तित्व और पहचान की रक्षा का सवाल बन गया है। लगातार सामने आ रहे ऐसे मामले इस बात का संकेत हैं कि धार्मिक स्थलों को लेकर सामाजिक और कानूनी रूप से अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

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