
नैनवां – जैन कनेक्ट संवाददाता | राजस्थान के नैनवां कस्बे में स्थित अग्रवाल दिगंबर जैन बड़े मंदिर में संचालित आदिनाथ दिगंबर जैन संस्कार पाठशाला पिछले 10 वर्षों से बच्चों को धार्मिक शिक्षा और संस्कार देने का महान कार्य कर रही है। इस पाठशाला की नींव 2016 में आर्यिका विशुद्धमति माताजी की प्रेरणा से रखी गई थी। तब से अब तक 30 से 35 छात्र-छात्राएं नियमित रूप से यहां आकर जैन धर्म के मूल सिद्धांतों को सीख रहे हैं।
बच्चों को न केवल धर्म की जानकारी दी जाती है, बल्कि उन्हें व्यवहार, जीवनशैली और नैतिकता से जुड़ी बातें भी सिखाई जाती हैं। वे देव दर्शन, रात्रि भोजन त्याग, छाना हुआ पानी पीना, सत्य बोलना और पापकर्म से बचना जैसे आदर्शों को अपने जीवन में उतार रहे हैं।
🔹 प्रस्तुत हैं इस संस्कार पाठशाला से जुड़े प्रमुख तथ्य:
📚 संस्कार पाठशाला की शुरुआत 2016 में आर्यिका विशुद्धमति माताजी की प्रेरणा से इस पाठशाला की शुरुआत हुई, जो आज भी नियमित रूप से संचालित हो रही है।
👧 30 से अधिक बच्चों की भागीदारी रोजाना 30–35 बच्चे पाठशाला में भाग लेते हैं और जैन धर्म के विविध पहलुओं को गहराई से समझते हैं।
🧎 प्रतिदिन करते हैं देव दर्शन पाठशाला के बच्चे दिन की शुरुआत देव दर्शन से करते हैं, जिससे उनमें आध्यात्मिक जुड़ाव बना रहता है।
🚫 रात्रि भोजन से परहेज़ संस्कारों के अनुसार बच्चे रात्रि में भोजन नहीं करते, जो जैन आचार्य परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
💧 छाना हुआ पानी पीने की आदत बच्चों को पानी छानकर पीना सिखाया गया है, जिससे जीव हिंसा से बचा जा सके।
🕉️ पूजन विधि का प्रशिक्षण बच्चों को भगवान की पूजन विधि भी पाठशाला में सिखाई जाती है, जिससे वे श्रद्धा और विधि से पूजा कर सकें।
🗣️ सत्य बोलने की शिक्षा पाठशाला में बच्चों को सत्य बोलने और झूठ से बचने का अभ्यास करवाया जाता है, जो नैतिक शिक्षा का आधार है।
🙌 टीचर्स का समर्पित योगदान संगीता जैन मोडीका, अंजु मोडीका और रीना सेठिया जैसे शिक्षकों ने इस पाठशाला में संस्कारों की नींव मजबूत की है।
👦 बच्चों में जागा धर्म का बोध मनन मोडीका, अवंतिका, दिवांशु, प्राक्षी, अरहम जैसे बच्चे अब जैन धर्म को समझने और अपनाने लगे हैं।
🌟 संस्कारों से बनते हैं अच्छे नागरिक बच्चों का मानना है कि धर्म और संस्कार ही उन्हें अच्छा नागरिक और अच्छा इंसान बनाते हैं।
नैनवां की यह जैन संस्कार पाठशाला न सिर्फ बच्चों को धार्मिक शिक्षा दे रही है, बल्कि उनमें नैतिकता, अनुशासन और आत्मज्ञान की ऐसी भावना जगा रही है, जो भविष्य में समाज के लिए अमूल्य साबित होगी। धर्म के बीज बचपन में ही बोए जाएं, तभी जीवन में उनका फल परिपक्व होता है — यही इस पाठशाला की सफलता की असली कहानी है।
Leave a Reply