
राजकोट–जैन कनेक्ट संवाददाता | पूर्व गुजरात मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के आकस्मिक निधन के बाद जैन समाज में गहरा शोक व्याप्त है। अहमदाबाद में हुई विमान दुर्घटना में 241 लोगों के साथ उनका भी दुखद निधन हुआ। राजकोट के हेमू गढ़वी हॉल में आयोजित ‘गुणांजलि समारोह’ में जैन संतों, राजनेताओं और समाज के हजारों श्रद्धालुओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर जैन संत नम्रमुनि महाराज ने केंद्र सरकार से 12 जून को ‘जीवदया दिवस’ घोषित करने की अपील की।
🔸 विजय रुपाणी के लिए ‘गुणांजलि समारोह’ राजकोट में आयोजित समारोह में देश-विदेश से हजारों लोगों ने ऑनलाइन और प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा लेकर श्रद्धांजलि दी।
🔸 ‘जीवदया दिवस’ की अपील पारसधाम के संत नम्रमुनि महाराज ने 12 जून को ‘जीवदया दिवस’ घोषित करने का अनुरोध किया, जिससे विजयभाई की करुणा को चिरस्थायी बनाया जा सके।
🔸 पूर्व सीएम को ‘जीवदया रत्न’ की उपाधि 2017 में विजय रुपाणी को संत नम्रमुनि महाराज द्वारा ‘जीवदया रत्न’ की उपाधि प्रदान की गई थी, जो उनके अहिंसा के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
🔸 स्कॉलरशिप योजना का शुभारंभ विजयभाई की शिक्षा में रुचि को सम्मान देते हुए ‘विजय रुपाणी स्कॉलरशिप’ की घोषणा की गई, जिससे हर वर्ष 68 विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिलेगी।
🔸 जैन संतों की गरिमामयी उपस्थिति श्वेतांबर संप्रदाय के जगतशेखर विजयजी, स्थानकवासी सुषांत मुनि, लिमडी अज्रमर संतों सहित कई साध्वीवृंद भी समारोह में उपस्थित रहे।
🔸 राजनीतिक हस्तियों की श्रद्धांजलि केंद्रीय मंत्री पुरषोत्तम रुपाला, राज्यसभा सांसद राम मोकड़िया, विधायक राम तिलारा व पराग शाह सहित कई राजनेताओं ने श्रद्धांजलि दी।
🔸 एक सेवाभावी ‘सीएम’ की छवि विजयभाई के पुत्र ने उन्हें ‘Committed Man, Cultivated Man, and Cultured Man’ कहते हुए उनकी सेवा भावना को याद किया।
🔸 सेवा में समर्पित व्यक्तित्व रुपाला ने उन्हें एक कर्मयोगी और बिना अपेक्षा के सेवा करने वाला सच्चा सेनापति बताया।
🔸 180 देशों से श्रद्धालु जुड़े ऑनलाइन माध्यम से 180 देशों के लोगों ने जुड़कर श्रद्धांजलि अर्पित की, जो उनके वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।
🔸 वार्षिक रूप से बंद हों कत्लखाने संत नम्रमुनि महाराज ने सुझाव दिया कि 12 जून को भारतभर के कत्लखाने बंद रहकर विजयभाई की स्मृति को जीवित रखा जाए।
पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को समर्पित ‘गुणांजलि समारोह’ में करुणा, शिक्षा और सेवा के मूल्यों को आत्मसात करते हुए समाज ने एक ऐसे नेता को श्रद्धांजलि दी, जिसने जैन सिद्धांतों को जीवन में उतारा। अब ‘जीवदया दिवस’ की मांग उनके विचारों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का माध्यम बन सकती है।
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