नई दिल्ली – जैन कनेक्ट संवाददाता | “मजबूत बनो, रोना लड़कियों का काम है” – ये वाक्यांश हम सबने कभी न कभी सुना है। लेकिन अब वक्त बदल रहा है। पुरुषों की भावनात्मक मजबूती भी उतनी ही जरूरी है जितनी शारीरिक ताकत। योग विशेषज्ञ सौरभ बोथरा का मानना है कि पुरुषों को भी अब अपने भीतर झांकना सीखना होगा, क्योंकि मौन भी कभी-कभी मौत बन सकता है। बढ़ते तनाव, तुलना के दबाव और जीवन की भागदौड़ के बीच, पुरुष भी योग, श्वास अभ्यास और थेरैपी की ओर बढ़ रहे हैं – सिर्फ ट्रेंड के लिए नहीं, बल्कि ध्यान, नींद और रिश्तों की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार के लिए।
सौरभ बोथरा ने भावनात्मक फिटनेस के लिए सात व्यावहारिक आदतें बताई हैं, जो किसी भी पुरुष के जीवन को भीतर से सशक्त बना सकती हैं।
🧘 साँसों के साथ हलचल: ब्रेथ-लेड मूवमेंट हर सुबह 10 मिनट धीमे, सचेत गति में व्यतीत करें। सूर्य नमस्कार जैसी सरल क्रियाएं नर्वस सिस्टम को शांत करती हैं और दिन की शुरुआत को बेहतर बनाती हैं।
📝 भावनाओं को नाम दो: नेम इट टू टेम इट दिन में तीन बार अपनी भावना को एक शब्द में नोट करें – जैसे “गुस्सा”, “शांत”, “थका हुआ”। यह अभ्यास आपको आत्म-जागरूक बनाता है।
⏳ माइक्रो-ब्रेक्स लें: दिमाग को भी चाहिए आराम काम के बीच दिन में दो बार 5 मिनट का छोटा ब्रेक लें – बाहर जाएं, स्ट्रेच करें या ‘बॉक्स ब्रीदिंग’ करें।
👬 बुद्धिमत्ता दिखाएं, बहादुरी नहीं: ब्रदरहुड, नॉट ब्रावाडो मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करें। एक दोस्त से कहें – “यार, कुछ अजीब महसूस हो रहा है, तुम्हारे साथ भी होता है क्या?”
🧠 थेरैपी को अपनाएं: मेंटल कोचिंग है जरूरी थेरैपी आखिरी रास्ता नहीं, बल्कि दिमाग के लिए कोचिंग है। कुछ सेशन में आप व्यवहारिक रणनीतियां सीख सकते हैं।
😄 हँसी को भी आदत बनाएं जिन चीज़ों से सच में हँसी आती है – उन्हीं को रोजाना का हिस्सा बनाएं। इससे तनाव कम होता है और सकारात्मकता बढ़ती है।
📚 आदतें बनाएं, बदलाव आएगा यह जानना जरूरी है कि अंदर क्या चल रहा है। ब्रेथवर्क और योग से आत्म-संवेदनशीलता आती है जो प्रतिक्रियाओं को संतुलित बनाती है।
📉 चुप्पी की कीमत जानें भारत में पुरुष आत्महत्या दर 14.2 प्रति लाख है। बोथरा कहते हैं – “चुप्पी मार सकती है।” इसलिए बोलना और साझा करना सीखें।
🤝 समुदाय से जुड़ाव अगर निजी सर्कल भरोसेमंद नहीं लगते, तो ऑनलाइन या ऑफलाइन मेंस ग्रुप्स से जुड़ें, जहां जजमेंट नहीं होता।
💪 भावनात्मक मजबूती ही असली ताकत है किसी भी रिश्ते, करियर और जीवन के लिए स्थायी ऊर्जा भावनात्मक सशक्तता से आती है – यह रिएक्शन नहीं, रिस्पॉन्स की ताकत देती है।
पुरुषों के लिए अब समय आ गया है कि वे अपनी भावनाओं को नकारें नहीं, बल्कि उन्हें अपनाएं। यह परिवर्तन केवल भीतर की दुनिया को बेहतर नहीं बनाता, बल्कि रिश्तों और जीवन के हर क्षेत्र में नई रोशनी लाता है। सौरभ बोथरा के बताए ये 7 अभ्यास पुरुषों के लिए मानसिक और भावनात्मक रूप से एक नई राह खोल सकते हैं – जहाँ सच्ची ताकत दिखावे से नहीं, संवेदना से आती है।
Source : Hindustan Times

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