
दिल्ली- जैन कनेक्ट संवाददाता | जैन धर्मावलंबियों के लिए दशलक्षण पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व आत्मसंयम, तप, त्याग और क्षमा के गुणों को आत्मसात करने का अवसर प्रदान करता है। हर साल भाद्रपद मास में मनाए जाने वाले इस पर्व का आरंभ इस वर्ष दिगंबर जैन समाज में 28 अगस्त से हुआ है, जिसका समापन 6 सितंबर को अनंत चौदस के दिन होगा। भगवान महावीर के सिद्धांत “अहिंसा परमो धर्म” पर आधारित यह पर्व न केवल आध्यात्मिक शुद्धि बल्कि सामाजिक सौहार्द का भी संदेश देता है।
✨ इस पर्व के दस दिनों में प्रत्येक दिन एक विशेष गुण के अभ्यास को समर्पित होता है। आइए जानते हैं दशलक्षण पर्व के 10 दिनों का महत्व—
🙏 प्रथम दिन – उत्तम क्षमा
इस दिन जैन अनुयायी क्षमा यानी माफ करने और द्वेष छोड़ने के गुणों का चिंतन करते हैं।
🌸 दूसरा दिन – उत्तम मार्दव
नम्रता और सरलता को जीवन में अपनाने का संकल्प लिया जाता है।
🪷 तीसरा दिन – उत्तम आर्जव
भावों की शुद्धता और निष्कपट व्यवहार पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
💧 चौथा दिन – उत्तम शौच
लोभ और लालच से दूर रहते हुए मानसिक पवित्रता का अभ्यास किया जाता है।
🕉 पांचवां दिन – उत्तम सत्य
सत्य के मार्ग पर चलने और जीवन में उसे आत्मसात करने का प्रयास किया जाता है।
🪔 छठा दिन – उत्तम संयम
मन, वचन और शरीर पर नियंत्रण स्थापित करने का अभ्यास किया जाता है।
🔥 सातवां दिन – उत्तम तप
तपस्या द्वारा गलत विचारों और नकारात्मक प्रवृत्तियों को दूर किया जाता है।
🌿 आठवां दिन – उत्तम त्याग
क्रोध, माया और लोभ का त्याग कर आत्मशुद्धि का मार्ग अपनाया जाता है।
💠 नौवां दिन – उत्तम आकिंचन
मोह-माया और भौतिक बंधनों से मुक्त होकर धर्म की राह पर चलने का संकल्प किया जाता है।
🕊 दसवां दिन – ब्रह्मचर्य और क्षमावाणी
आत्मसंयम और पवित्रता का अभ्यास किया जाता है। इस दिन क्षमावाणी पर्व भी मनाया जाता है, जिसमें सभी से क्षमा याचना कर सौहार्द का संदेश दिया जाता है।
यह पर्व जैन समाज के लिए केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन को पवित्र, सरल और सच्चाई के मार्ग पर ले जाने का प्रेरणास्त्रोत है। दशलक्षण पर्व का सार यही है कि क्षमा, सत्य और अहिंसा जैसे गुणों से जीवन को महान बनाया जाए।
Leave a Reply