फिरोजाबाद–जैन कनेक्ट संवाददाता | फिरोजाबाद के छदामीलाल दिगंबर जैन मंदिर में भगवान बाहुबली का ऐतिहासिक महामस्तिकाभिषेक उत्सव श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। 12 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर 1008 कलशों से भगवान बाहुबली का अभिषेक हो रहा है। यह आयोजन आध्यात्मिकता, संस्कृति और भव्यता का अद्भुत संगम बनकर सामने आया है। आचार्य वसुनंदी महाराज के ससंघ सानिध्य में इस महाआयोजन की शुरुआत हुई, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। आइए जानें इस पावन आयोजन से जुड़ी 10 विशेष झलकियां:
🔱 आचार्य वसुनंदी महाराज के कर-कमलों से शुभारंभ महामस्तकाभिषेक की शुरुआत पूज्य आचार्य वसुनंदी महाराज ने पूजा-अर्चना के साथ की, जिससे समस्त वातावरण भक्तिमय हो उठा।
🛕 12 वर्षों के बाद पुनः आयोजित हो रहा है महामस्तकाभिषेक 2012 के बाद यह आयोजन चौथी बार आयोजित किया जा रहा है। इससे पहले यह 1985, 2005 और 2012 में हुआ था।
🪔 श्रद्धालुओं ने निभाई इंद्र-इंद्राणी की भूमिका पीत वस्त्र और सोने का मुकुट धारण किए श्रद्धालु इंद्र-इंद्राणी रूप में भगवान का अभिषेक करते नजर आए।
💧 1008 कलशों से हुआ दिव्य अभिषेक श्रद्धालुओं ने हाथों में कलश लेकर भगवान बाहुबली की विशाल प्रतिमा पर जलाभिषेक किया, जो आस्था का प्रतीक बना।
🎶 भजन संध्या में गूंजे भक्ति रस से सराबोर गीत भोपाल के राजेश जैन और इंदौर के रूपेश जैन ने सुमधुर भजनों से श्रद्धालुओं को भक्ति में डुबो दिया।
📸 मोबाइल कैमरों में कैद हुआ यह ऐतिहासिक दृश्य लोगों ने फोटो और वीडियो के ज़रिए इस पावन पल को अपने दिलों में संजोने के लिए कैमरे थामे रखे।
📞 वीडियो कॉल पर बाँटी जा रही थी आस्था कुछ श्रद्धालु अपने परिजनों को लाइव वीडियो कॉल के माध्यम से इस अद्भुत दृश्य से जोड़ रहे थे।
🧘 श्रद्धालुओं में दिखी एकाग्रता और भक्ति की गहराई कई श्रद्धालु जमीन पर, मंच के सामने या मंदिर परिसर में खड़े होकर भगवान की प्रतिमा को एकटक निहारते रहे।
📍 कारकल से लाई गई है बाहुबली की यह भव्य प्रतिमा सेठ छदामीलाल जैन ने इस प्रतिमा को कर्नाटक के मैंगलोर जिले के कारकल से बनवाकर यहाँ स्थापित करवाया था।
📅 12 जून 1975 को हुई थी प्रतिमा की प्रतिष्ठा यह दक्षिण भारत की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है, जिसका वजन करीब 130 टन है और इसे 1975 में मंदिर में स्थापित किया गया था।
इस ऐतिहासिक महामस्तिकाभिषेक महोत्सव ने फिरोजाबाद को एक बार फिर धर्म और आस्था के केंद्र में ला खड़ा किया है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़, भक्ति में लीन वातावरण और सौंदर्य से परिपूर्ण आयोजन ने यह साबित कर दिया कि धार्मिक परंपराएं आज भी समाज को जोड़ने का सशक्त माध्यम हैं।

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