
अंबाला–जैन कनेक्ट संवाददाता | अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर अंबाला छावनी में जैन समाज द्वारा पारंपरिक रूप से गन्ने के रस का भंडारा लगाया गया। इस आयोजन में बड़ी संख्या में राहगीरों, श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों ने हिस्सा लिया और चिलचिलाती गर्मी में शीतल इक्षु रस का आनंद लिया। आयोजन का उद्देश्य भगवान आदिनाथ के ऐतिहासिक पारना प्रसंग की स्मृति में सेवा भाव और पुण्य अर्जन था।
📅 अक्षय तृतीया का पावन पर्व यह दिन जैन धर्म में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन भगवान आदिनाथ ने 400 दिन के उपवास के बाद गन्ने का रस ग्रहण किया था।
🍹 गन्ने के रस का विशाल भंडारा
अंबाला छावनी में जैन समाज ने अनेक स्थानों पर गन्ने के रस के स्टॉल लगाए, जिससे लोगों को गर्मी में राहत मिली।
🧘 भगवान आदिनाथ का तप व पारना मान्यता है कि भगवान आदिनाथ ने कठोर तपस्या के बाद राजा श्रेयांस द्वारा अर्पित इक्षु रस से पारना किया था।
🛕 धार्मिक स्मृति का पुनर्स्मरण यह आयोजन प्रथम तीर्थंकर के आहार की ऐतिहासिक घटना को याद करते हुए सेवा और दान के संदेश को बढ़ावा देता है।
🌞 गर्मी में राहत का साधन तपती दोपहरी में गन्ने का रस पीकर लोगों ने राहत महसूस की और इस सेवा कार्य की सराहना की।
👥 समूहिक सहभागिता और सेवा जैन सभा के सदस्यों ने स्वयं सेवा कर लोगों को गन्ने का रस वितरित किया और पुण्य कमाया।
🗣️ सभा पदाधिकारियों का नेतृत्व उप प्रधान नरेश जैन सहित अन्य वरिष्ठ सदस्यों ने भंडारे की व्यवस्था संभाली और आयोजन को सफल बनाया।
🎁 दान और पुण्य की परंपरा अक्षय तृतीया को जैन समाज में आहार दान का अत्यंत पुण्य अवसर माना जाता है, जो सेवा की प्रेरणा देता है।
📖 धार्मिक जागरूकता का संदेश आयोजन के माध्यम से समाज को भगवान आदिनाथ की जीवन गाथा और जैन सिद्धांतों की जानकारी दी गई।
🏡 स्थानीय जनता की भागीदारी स्थानीय नागरिकों ने भी इस भंडारे में बड़ी संख्या में भाग लेकर सेवा कार्य को सफल बनाया।
इस आयोजन ने अंबाला में न केवल धार्मिक उल्लास फैलाया, बल्कि समाज में परंपरा, तप, और दान की भावना को भी पुनर्जीवित किया। गन्ने के रस के माध्यम से जैन समाज ने श्रद्धालुओं को शीतलता ही नहीं, बल्कि धर्म का सार भी प्रदान किया।
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