
अजमेर–जैन कनेक्ट संवाददाता | अजमेर, सूफी और संत परंपराओं की पावन भूमि, एक नई मांग को लेकर चर्चा में है। दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अजमेर को राष्ट्रीय जैन तीर्थ स्थल घोषित करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय भारत की धार्मिक विविधता और सांप्रदायिक सौहार्द को और अधिक मज़बूती देगा। दीवान का यह बयान ऐसे समय आया है जब जैन समाज 5 और 6 फरवरी को आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज के प्रथम समाधि दिवस पर गुरु गुणानुवाद महोत्सव मनाने जा रहा है।
🔹 अजमेर की सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल अजमेर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और ब्रह्मा मंदिर के कारण धार्मिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है।
📜 प्रधानमंत्री को भेजा गया पत्र दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर अजमेर को राष्ट्रीय जैन तीर्थ स्थल घोषित करने की अपील की।
🙏 भारत की आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक दीवान ने कहा कि भारत संतों, ऋषियों और महापुरुषों की भूमि है, जिन्होंने मानवता की सेवा में योगदान दिया।
🌍 विश्वभर में आस्था का केंद्र ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह विश्व भर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है और अजमेर की धार्मिक प्रतिष्ठा को बढ़ाती है।
🛕 ब्रह्मा मंदिर से जुड़ा धार्मिक महत्व जगत पिता ब्रह्मा का तीर्थस्थल होने के कारण अजमेर हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
🧘 आचार्य विद्यासागर महाराज का संबंध जैन संत आचार्य विद्यासागर महाराज ने अपने आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत अजमेर से की थी और यहीं उन्हें दीक्षा मिली थी।
📅 6 फरवरी को पुण्यतिथि पर कार्यक्रम देशभर में 6 फरवरी को आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज की पुण्यतिथि मनाई जाएगी, जो मानव सेवा और तपस्या के प्रतीक रहे हैं।
🎊 गुरु गुणानुवाद महोत्सव की तैयारी 5 और 6 फरवरी को अजमेर में गुरु गुणानुवाद महोत्सव का आयोजन किया जाएगा, जिसमें बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालु जुटेंगे।
📣 धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा दीवान ने कहा कि जैन तीर्थ के रूप में अजमेर की मान्यता मिलने से भारत में सांप्रदायिक सौहार्द को बल मिलेगा।
🏛️ राष्ट्रीय पहचान की दिशा में पहल अजमेर को राष्ट्रीय जैन तीर्थ स्थल घोषित करने से शहर की धार्मिक और ऐतिहासिक पहचान को एक नया आयाम मिलेगा।
दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन की यह पहल न सिर्फ आचार्य विद्यासागर महाराज के प्रति श्रद्धांजलि है, बल्कि अजमेर की बहुधार्मिक परंपरा को सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। यदि यह मांग पूरी होती है, तो यह न केवल जैन समाज बल्कि भारत की बहुलतावादी संस्कृति के लिए एक गर्व का विषय होगा।
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