पुडुकोत्तई – जैन कनेक्ट संवाददाता | तमिलनाडु के पुडुकोत्तई जिले के थिरुमयम क्षेत्र स्थित वेल्लाला कोट्टैयूर गांव में 10वीं सदी की एक दुर्लभ जैन प्रतिमा की खोज हुई है। यह प्रतिमा महावीर भगवान की है, जिसे झाड़ियों के बीच एक सरकारी कर्मचारी ने देखा। यह खोज पुडुकोत्तई पुरातात्विक अनुसंधान मंच के संस्थापक मणिकंदन और उनकी टीम ने प्रमाणित की है। प्रतिमा चोल काल की मूर्तिकला परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण है और जैन धर्म की ऐतिहासिक उपस्थिति को रेखांकित करती है।
🧘♂️ 10वीं सदी की महावीर प्रतिमा की खोज वेल्लाला कोट्टैयूर में मिली महावीर स्वामी की प्रतिमा 90 सेंटीमीटर ऊंची और 47 सेंटीमीटर चौड़ी है, जो चोलकालीन जैन मूर्तिकला परंपरा का प्रतीक है।
🌿 झाड़ियों के बीच मिली प्राचीन मूर्ति एक सरकारी कर्मचारी ने झाड़ियों के बीच इस अद्वितीय प्रतिमा को देखा, जिसके बाद इसकी जानकारी पुरातत्वविदों तक पहुंची।
🏛️ चोलकालीन विरासत की पुष्टि मणिकंदन के अनुसार यह प्रतिमा 9वीं-10वीं सदी की है, जब पुडुकोत्तई क्षेत्र में जैन धर्म का प्रभाव चरम पर था।
📚 पुरातत्व विभाग की भागीदारी तमिल विश्वविद्यालय, तंजावुर के पुरातत्व विभाग से जुड़े शोधकर्ता मणिकंदन और उनकी टीम ने मिलकर इस क्षेत्रीय खोज का अध्ययन किया।
📸 महत्वपूर्ण सांस्कृतिक साक्ष्य प्रतिमा न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक विरासत के प्रमाण के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
🔧 संरक्षण की आवश्यकता पर जोर शोधकर्ताओं ने तत्काल संरक्षण की आवश्यकता जताई है, ताकि यह दुर्लभ प्रतिमा भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखी जा सके।
🤝 शोध दल की सामूहिक भागीदारी मोहम्मद (संयुक्त सचिव), राधाकृष्णन, अरुल मुथुकुमार, थेमावूर नंदन और पुडुकाई पुधलवन इस क्षेत्रीय अध्ययन में सक्रिय रूप से शामिल रहे।
🧭 जैन धर्म के ऐतिहासिक केंद्र का संकेत यह खोज प्रमाणित करती है कि पुडुकोत्तई क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से जैन धर्म का एक प्रमुख केंद्र रहा है।
🧱 स्थानीय धरोहरों के संरक्षण की अपील स्थानीय सामाजिक संगठनों और पुरातत्व प्रेमियों ने इस खोज को देखते हुए अन्य संभावित विरासत स्थलों की रक्षा की मांग की है।
📢 लोकल प्रशासन से संरक्षण की उम्मीद शोधकर्ताओं और नागरिकों को अब उम्मीद है कि जिला प्रशासन इस ऐतिहासिक धरोहर की रक्षा हेतु कदम उठाएगा।
इस महत्वपूर्ण खोज ने न केवल पुडुकोत्तई क्षेत्र की जैन विरासत को उजागर किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भारत के विभिन्न हिस्सों में छुपी हुई सांस्कृतिक संपदा को संरक्षित करने की ज़रूरत है। यह प्रतिमा आने वाली पीढ़ियों के लिए जैन धर्म की ऐतिहासिक उपस्थिति का सजीव प्रमाण बन सकती है।
Source : Times Of India

Leave a Reply