प्रतापगढ़–जैन कनेक्ट संवाददाता | प्रतापगढ़ स्थित शांतिनाथ तीर्थ क्षेत्र में मंगलवार की रात एक अद्वितीय आध्यात्मिक घटना घटी, जब दिगंबर मुनि सुखसागर महाराज ने तीन दिन के संथारा उपवास के बाद समाधि मरण को प्राप्त किया। मुनि श्री ने अन्न, जल और सभी भौतिक वस्तुओं का त्याग कर आत्म साधना में लीन रहते हुए मोक्ष मार्ग की ओर अंतिम यात्रा पूरी की। इस अवसर पर देशभर के श्रद्धालु शांतिनाथ मंदिर में एकत्र हुए और भव्य डोल यात्रा एवं अंतिम विधियों में भाग लिया।
🔷 तीन दिन से संथारा में लीन मुनि सुखसागर महाराज ने तीन दिन पूर्व संथारा धारण कर सभी प्रकार का त्याग किया था, जिसमें अन्न, जल, दवा और अन्य worldly वस्तुएं शामिल थीं।
🔔 मंगलवार रात को लिया अंतिम सांस रात 2 बजे मुनि श्री ने शुद्ध सागर महाराज, सुल्लक सुमित्र सागर महाराज और कई श्रावकों की उपस्थिति में अंतिम सांस ली।
🎺 डोल यात्रा का आयोजन मंगलवार सुबह 8:30 बजे शांतिनाथ मंदिर परिसर से डोल यात्रा निकाली गई, जो बैंड-बाजे और ढोल-नगाड़ों के साथ समाधि स्थल तक पहुंची।
🪵 चंदन की लकड़ी की वेदी पर अंतिम क्रियाएं समाधि स्थल पर चंदन की लकड़ी से बनी वेदी पर पंचामृत अभिषेक, शांतिधारा और पूजा की विधियां संपन्न की गईं।
🔥 मुखाग्नि में श्रावकों की भागीदारी मुनि श्री के अंतिम संस्कार में कई श्रावकों और परिजनों ने मुखाग्नि दी, जिसमें भावनात्मक माहौल देखने को मिला।
🪔 विनयांजलि सभा में श्रद्धा अर्पित प्रतापगढ़ में आयोजित विनयांजलि सभा में देशभर के श्रद्धालु उपस्थित हुए और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
🧘 दिगंबर मुनियों का परिवार नहीं होता सभा में सुमित्र सागर महाराज ने कहा कि दिगंबर मुनि का कोई पारिवारिक संबंध नहीं होता, उनका संबंध केवल साधु समाज से होता है।
📿 मुनि सुखसागर की दीक्षा यात्रा 22 वर्ष पूर्व उदयपुर में मुनि दीक्षा प्राप्त करने वाले सुखसागर महाराज ने दीक्षा के मूल सिद्धांतों का पालन करते हुए साधना में जीवन बिताया।
🤐 मौन साधना के माध्यम से आत्मा की खोज मुनि श्री ने अपने जीवन का अधिकांश भाग मौन व्रत में व्यतीत किया, वे शास्त्र वचनों में लीन रहते थे और संसार से विरक्त थे।
🌼 श्रावकों में सुख बांटने का कार्य मुनि शुद्ध सागर महाराज ने बताया कि मुनि सुखसागर महाराज ने अपने नाम के अनुरूप समाज को केवल सुख बांटने का कार्य किया।
संक्षेप में, मुनि सुखसागर महाराज का जीवन त्याग, साधना और आत्मा की शुद्धता का प्रतीक था। उनके समाधि मरण के अवसर पर जैन समाज ने उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके तपस्वी जीवन से प्रेरणा ली।
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