
गांधीनगर–जैन कनेक्ट संवाददाता | गांधीनगर स्थित सुमतिधाम में आयोजित छह दिवसीय पट्टाचार्य महोत्सव का समापन ऐतिहासिक क्षण के साथ हुआ, जब आचार्य विशुद्ध सागर महाराज को पट्टाचार्य की प्रतिष्ठित उपाधि से विभूषित किया गया। अक्षय तृतीया के पुण्य अवसर पर हुए इस अनुष्ठान में जैन समाज के हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में यह घोषणा की गई। इस सम्मान के साथ आचार्य विशुद्ध सागर अब देश के सबसे बड़े जैन संघ के प्रमुख बन गए हैं।
🔸 📜 पट्टाचार्य उपाधि से विभूषित हुए आचार्य विशुद्ध सागर सुमतिधाम में आयोजित समारोह में आचार्य विशुद्ध सागर महाराज को विधिवत पट्टाचार्य घोषित किया गया।
🔸 🛕 देश का सबसे बड़ा जैन संघ बना इस उपाधि के साथ उनके नेतृत्व में 550 से अधिक पिच्छियों का विशाल संघ देशभर में धर्म की सेवा करेगा।
🔸 🧘♂️ जैन संतों की ऐतिहासिक उपस्थिति महोत्सव में 8 उपाध्याय, 140 दिगंबर मुनि, 9 गणिनी आर्यिका, 123 आर्यिका माता, 105 ऐलक व क्षुल्लक एक साथ उपस्थित रहे।
🔸 📿 दीप प्रज्ज्वलन और गुणानुवाद से हुआ अभिनंदन पट्टाचार्य उपाधि की घोषणा के बाद गुरुदेव के चित्र का अनावरण कर श्रद्धालुओं ने गुणगान किया।
🔸 🙏 संघ संचालन की मिली संपूर्ण जिम्मेदारी पट्टाचार्य के रूप में अब संपूर्ण चातुर्विध संघ की आज्ञा व अनुशासन, दीक्षा व समाधि तक की जिम्मेदारी विशुद्ध सागर महाराज को प्राप्त होगी।
🔸 🤝 JITO प्रतिनिधिमंडल की सम्मान भेट JITO के शीर्ष प्रतिनिधियों ने आचार्य श्री से भेंट कर समाजसेवा के प्रकल्पों की जानकारी साझा की।
🔸 📣 सदियों पुरानी परंपरा को मिला नया अध्याय विधानाचार्यों ने बताया कि पट्टाचार्य पद गुरु परंपरा की निरंतरता और धर्म संचालन की महत्वपूर्ण कड़ी है।
🔸 🌟 संतों के संघ से मिला मार्गदर्शन कार्यक्रम में आचार्य विराग सागर, पुष्पदंत सागर, प्रज्ञा सागर, सुंदर सागर समेत अनेक संतों का सान्निध्य मिला।
🔸 🎉 गुरुभक्ति से गूंजा सुमतिधाम पूरे आयोजन के दौरान भक्ति, अनुशासन और गुरुवर की महिमा का भावपूर्ण वातावरण बना रहा।
🔸 🌸 जैन समाज में हर्ष का वातावरण गणमान्य व्यक्तियों, युवाओं और श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति ने इस ऐतिहासिक दिन को और गौरवपूर्ण बना दिया।
आचार्य विशुद्ध सागर महाराज को मिली पट्टाचार्य की उपाधि न केवल गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान है, बल्कि यह जैन धर्म की निरंतरता, अनुशासन और चारित्रिक नेतृत्व को एक नई दिशा भी प्रदान करती है। यह आयोजन पूरे जैन समाज के लिए गौरव और प्रेरणा का स्रोत बन गया।
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